अभी इतिहास से पर्दा उठना बाकी महुआ डाबर
पुरातत्व विभाग ने कहा, यहां बसती थी बस्ती अवशेष से मिले हैं बस्ती होने के पूरे साक्ष्य कुआं, नालियां, कोयला, राख, दीवारें बर्तन मिले अमर उजाला ब्यूरो बस्ती। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े महुआ डाबर गांव की खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग को यहां पर बस्ती होने के अवशेष मिले हैं। कुआं, लाखौरी ईंट से बनी दीवारें, विभिन्न दिशाओं में निकली नालियां, छज्जा, लकड़ी के जले टुकड़े, राख, मिट्टी के बर्तन इस बात की गवाही दे रहे हैं। यहीं नहीं खुदाई के दौरान अभ्रक (माइका) मिला है। यह कहना है लखनऊ विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर अनिल कुमार का। कुमार गुरुवार को सक्सेरिया इंटर कालेज में प्रेस से रूबरू हुए। अनिल कुमार की टीम ११ जून से महुआडाबर की खुदाई में जुटी थी। एक जुलाई को खुदाई का काम पूरा हो गया है। हालांकि अभी टीम महुआडाबर पर विशेष कुछ कहने को तैयार नहीं है। प्रोफेसर कुमार कहते हैं कि मिले साक्ष्य को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास भेज दिया गया है। जांच के बाद ही स्थिति और स्पष्ट हो पाएगी। यह तो तय है कि महुआडाबर में अब भी इतिहास छुपा है। बताते चलें कि ऐतिहासिक महुआडाबर गांव की खोज मोहम्मद लतीफ ने की है। इस टीले में १० जून १८५७ की पहली क्रांति से जुड़ी गाथा छुपी है। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हिंदुस्तानियों में चिंगारी फूटने लगी थी। फैजाबाद से दानापुर बिहार के लिए जा रही ब्रिटिश फौज के सात अफसरों में से ६ को हिंदुस्तानियों ने मौत के घाट उतार दिया। नाराज अंग्रेजों ने महुआडाबर गांव को जला दिया। उसी समय लतीफ के पूर्वज महुआडाबर गांव छोड़कर मुंबई चले गए। अंग्रेजों की जुल्म की कहानी परिवार में पुश्त दर पुश्त चलती रही। सच्चाई जानने के लिए ०८ फरवरी १९९४ को लतीफ बस्ती आए। इतिहास को खंगालने में उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। १९०७ के बस्ती गजेटियर के ३२वें भाग के पेज नंबर १५८ पर गांव में ६ अफसरों के मार गिराने के तथ्य मिले। इसी को आधार बनाकर लतीफ ने १८५७ से जुड़े तथ्यों की खोज शुरू कर दी। लंबे जद्दोजहद के बाद १८६० में ब्रिटिश लेखक चार्ल्सबाल की लिखित द हिस्ट्री आफ इंडियन म्यूटनी के पेंज नंबर ३९८-४०१, १८७८ में लिखी कर्नल जीबी मालेसन की पुस्तक ४००-४००१ सहित कई इतिहासकाराें की पुस्तकों में कई तथ्य मिले। सभी तथ्य उनके उनके पूर्वजों की बातों से मेल खाने लगे। फिर तत्कालीन जिलाधिकारी रामेंद्र त्रिपाठी ने लतीफ के तथ्यों के आधार पर पुरातत्व विभाग को प्रकरण प्रेषित किया था। संस्तुति के बाद ११ जून को पुरातत्व विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर अनिल कुमार की टीम महुआडाबर गांव आई। तीन दिन के सर्वे के बाद टीम सोमवार से खुदाई शुरू कर दी। एक साथ पांच जगहों पर खुदाई हुई। एक जुलाई को खुदाई खत्म हो गई। इस दौरान अरबन बैंक के चेयरमैन जगदीश्वर सिंह ‘ओेमजी’, विनय कुमार सिंह, राजवंत सिंह आदि उपस्थित हुए। ...छलक पड़े आंसूबस्ती। महुआडाबर की खोज में पागलों की ‘तरह’ भटकना। कई दिनों तक भूखे पेट रहना। जेब में फूटी कौड़ी न होने के बावजूद पैदल ही मिलों मील सफर तय करने वाले मोहम्मद लतीफ अंसारी इतिहास के करीब तक पहुंच ही गए। प्रेसवार्ता में मददगारों का नाम लेते समय उनकी आंखें डबडबा गईं। वैसे तो उनके मददगार कई हैं, मगर सबसे अधिक सपोर्ट किया ‘ओमजी’ ने। हालांकि लतीफ की बातें काटकर चेयरमैन बीच में ही बोल पड़े, लतीफ यह मामला इतिहास से है। ऐसे में मदद करके मैंने कोई एहसान नहीं किया।
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